Wednesday, February 17, 2010
Tuesday, February 16, 2010
Tuesday, February 9, 2010
दिल्ली में बस नंबर ६२३ में यात्रा करते एक छोटे से बालक का दुस्साहस देखकर आस-पास के यात्रिओं का ध्यान उस की ओर तब गया जब वह सीट पर अकड़ कर बैठ गया और टिकट के पैसे देने से इंकार कर दिया । साथ यात्रिओं ने पूछा -साथ कौन है । कोई नहीं । अकेले हो । तुम्हे डर नहीं लगता अँधेरे में अकेले ? घर में किसी को बता कर आये हो ? और न जाने कितने सवालों के बाद पता चला कि वह सातवीं कक्षा में पड़ता है और घर में किसी को बिना बताये स्कूल से टेस्ट के बाद भाग कर इंडिया गेट घूमने आ गया है । उसने बताया कि उसकी मां फूलों के हार बनाती है व् पिता कन्डक्टर है ।
यह है हमारे देश के नौनिहाल , कर्णधार जो आज बिना टिकट यात्रा कर रहें हैं कल क्या करेंगे ?
यह है हमारे देश के नौनिहाल , कर्णधार जो आज बिना टिकट यात्रा कर रहें हैं कल क्या करेंगे ?
हे naari
हे नारी
नारी तुम कितनी भोली हो
मन ही मन उसे उधार देने को आतुर होगई ,
जो निमिष में तुम्हारी कल्पना से कई गुणा अधिक
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बटोर सकता है इस समाज में
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यत्र तत्र सर्वत्र बहुत विस्तीर्ण है उसका क्षेत्राधिकार
और इसके समक्ष लघुतम दीख पड़ता है
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तुम्हारा सामर्थ्य ,सत्ता ,प्रभुत्व और अस्तित्व .
८.२.२०१०.
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