हम सभी दिवाली से पहले घरों की सफाई शुरू कर देतें हैं ,पर कभी यह सोचा है कि हम अपने मन-मन्दिर की भी सफाई कर लें । हर वर्ष बुराई रूपी रावण का पुतला बना कर उस में बहुत सा विस्फोटक पदार्थ भर के जलाते हैं , अपने आस-पास के पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और प्रसन्न होते हैं । कुछ मित्रो -रिश्तेदारों जिनसे मन-मुटाव होता है , उन्हें क्षमा नहीं करते हैं॥ मिष्टान भी वहीं आदान -प्रदान करते हैं , जहाँ हमारा स्वार्थ निहित होता है । कैसी विडम्बना है न ।
देखिये न , प्रभु ने बीसों सूखे मेवे और फल बनाये हैं हमारे लिए और हम त्योहारों पर मिलावटी दूध की बनी मिठाईँ को प्राथमिकता देते हैं । आइये , इस वर्ष हम संकल्प करें कि हम केवल प्रभु-प्रदत फलों-सूखे-मेवे ही अपने शुभ -चिंतको को देंगे ।
शराब के स्थान पर सब्जियों का सूप , फलों का रस पीकर त्यौहार मनाएंगे ।
जुए के स्थान पर परिवार में बैठकर प्रभु-गीतों की, भजनों की अन्ताक्षरी खेलेंगे ।
किसी जरूरतमंद की सहायता करेंगे । किसी भूखे को भोजन खिलाएंगे । हम सभी प्रभु की संतान हैं। सभी से प्रेम करेंगे । सभी समुदायों जिनको हम धर्म के नाम से पुकारते हैं , का आदर करेंगे । सच्चा धर्म तो मानवता से प्रेम करना एवं सेवा करना है ।
Sunday, October 4, 2009
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aapne sach kaha hai.. kitna kuch aisa hai jo hona nahi chahiye par hum karte hain .. kabhi jaante huye kabhi anjane mein.. humein shaant mann se aatmanirikshan karne ki aavshaykta hai..
ReplyDeletebahut gehre vichar hain apke.