हम सभी दिवाली से पहले घरों की सफाई शुरू कर देतें हैं ,पर कभी यह सोचा है कि हम अपने मन-मन्दिर की भी सफाई कर लें । हर वर्ष बुराई रूपी रावण का पुतला बना कर उस में बहुत सा विस्फोटक पदार्थ भर के जलाते हैं , अपने आस-पास के पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और प्रसन्न होते हैं । कुछ मित्रो -रिश्तेदारों जिनसे मन-मुटाव होता है , उन्हें क्षमा नहीं करते हैं॥ मिष्टान भी वहीं आदान -प्रदान करते हैं , जहाँ हमारा स्वार्थ निहित होता है । कैसी विडम्बना है न ।
देखिये न , प्रभु ने बीसों सूखे मेवे और फल बनाये हैं हमारे लिए और हम त्योहारों पर मिलावटी दूध की बनी मिठाईँ को प्राथमिकता देते हैं । आइये , इस वर्ष हम संकल्प करें कि हम केवल प्रभु-प्रदत फलों-सूखे-मेवे ही अपने शुभ -चिंतको को देंगे ।
शराब के स्थान पर सब्जियों का सूप , फलों का रस पीकर त्यौहार मनाएंगे ।
जुए के स्थान पर परिवार में बैठकर प्रभु-गीतों की, भजनों की अन्ताक्षरी खेलेंगे ।
किसी जरूरतमंद की सहायता करेंगे । किसी भूखे को भोजन खिलाएंगे । हम सभी प्रभु की संतान हैं। सभी से प्रेम करेंगे । सभी समुदायों जिनको हम धर्म के नाम से पुकारते हैं , का आदर करेंगे । सच्चा धर्म तो मानवता से प्रेम करना एवं सेवा करना है ।