Tuesday, February 9, 2010

दिल्ली में बस नंबर ६२३ में यात्रा करते एक छोटे से बालक का दुस्साहस देखकर आस-पास के यात्रिओं का ध्यान उस की ओर तब गया जब वह सीट पर अकड़ कर बैठ गया और टिकट के पैसे देने से इंकार कर दिया । साथ यात्रिओं ने पूछा -साथ कौन है । कोई नहीं । अकेले हो । तुम्हे डर नहीं लगता अँधेरे में अकेले ? घर में किसी को बता कर आये हो ? और न जाने कितने सवालों के बाद पता चला कि वह सातवीं कक्षा में पड़ता है और घर में किसी को बिना बताये स्कूल से टेस्ट के बाद भाग कर इंडिया गेट घूमने आ गया है । उसने बताया कि उसकी मां फूलों के हार बनाती है व् पिता कन्डक्टर है ।
यह है हमारे देश के नौनिहाल , कर्णधार जो आज बिना टिकट यात्रा कर रहें हैं कल क्या करेंगे ?

3 comments:

  1. सही बात है..यदि शुरात ऐसी होगी तो दुस्साहस बढ़ता ही जाएगा। लेकिन दोषी माँ बाप भी हैं जो अपने बच्चो पर आज की भागम भाग जिन्दगी मे ध्यान नही दे पा रहे...

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  2. शुरु में ही अहसास कराना होगा कि यह गलत है वरना भविष्य तो इनका बंटाधार होना ही है.

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